निर्भया की मां आशा देवी - जिनकी बेटी जघन्य सामूहिक बलात्कार का शिकार हुई - देश के लिए एक चर्चित चेहरा हैं। टी वी चैनलों की चर्चाओं में या स्त्रिायों पर बढ़ते अत्याचारों के खिलाफ प्रदर्शनों में वह अक्सर दिखाई देती हैं। पिछले दिनों हैदराबाद एवं उन्नाव के सामूहिक बलात्कार काण्डों के बाद चैनलों पर चली चर्चा में भी वह विशेष तौर पर उपस्थित दिखीं, जिसमें उन्होंने अपनी राय भी रखी। उन्होंने यही बताया कि अभी तक अपराधी जिन्दा हैं, जब तक उन्हें फांसी पर लटकाया नहीं जाता तब तक उनकी बेटी के साथ जो हुआ उसका न्याय नहीं मिला। |
Thursday, December 12, 2019
कब माना जाए कि न्याय मिला ?
Sunday, December 8, 2019
किस तरफ बढ़ता जा रहा है हमारा समाज ?
- अंजलि सिन्हा
अभी हम सभी हैदराबाद की वेटरनरी डॉक्टर के साथ बलात्कार और हत्या के बर्बर घटना को लेकर क्षुब्ध थे कि उन्नाव की एक दूसरी बलात्कार पीड़िता ने सफदरजंग अस्पताल में / 6 दिसम्बर की रात/ को दम तोड़ दिया। ज्ञात हो कि उसके साथ बलात्कार को अंजाम देने वाले आरोपी जेल से पैरोल पर रिहा होकर बाहर आए थे और उन पांचों ने उस लड़की को जिन्दा जला दिया था जिसमें वह 90 फीसदी झुलस गयी थी।
Tuesday, November 26, 2019
Sunday, May 26, 2019
चुनाव नतीजों के बाद: कुछ फुटकर बातें
-अंजलि सिन्हा
नरेंद्र मोदी दुबारा भारत के प्रधानमंत्राी बनने जा रहे हैं।
यह पहली बार है कि कोई गैरकांग्रेसी सरकार दुबारा सत्ता में आयी है। किसानों के व्यापक असन्तोष, बेरोजगारी की अभूतपूर्व समस्या, बढ़ती महंगाई, अर्थव्यवस्था के संचालन को लेकर विगत सरकार की नाकामियों आदि के चलते जहां विपक्षी पार्टियों को यह लगने लगा था कि इस बार भाजपा 2014 के अपने आंकड़ों को दोहरा नहीं पाएगी, यह उसका आकलन गलत साबित हुआ है।
भाजपा के संकीर्ण नज़रिये एवं व्यवहार को देखते हुए आने वाले पांच साल की यात्रा को लेकर शंकाएं बनना लाजिमी हैं, लेकिन यहां हम भाजपा पर नहीं कांग्रेस से लेकर विपक्ष की धाराओं पर, महिलाओं की मानसिकता आदि पर बात कर रहे हैं।
Tuesday, March 26, 2019
अधिकार के लिए संघर्ष की मिसाल रकमा बाई (1864 - 1955)
विवाह और व्यक्तिगत संबंधों में चुनाव के अधिकार को लेकर लड़नेवाली रकमाबाई हमारे लिए एक प्रेरणा स्त्रोत है। रकमा के पिता का देहांत जब वो दो साल की थी तभी हो गया था। छः वर्ष पश्चात्, उनकी 23 वर्षीय मां जयंती बाई का दूसरा विवाह डॉ साखाराम अर्जुन के साथ कर दिया गया। चूंकि डॉ अर्जुन सामाजिक और धार्मिक सुधारकों की संगत में रहते थे, इसलिए रकमा को घर पर प्रोत्साहनशाली वातावरण मिला।
Saturday, March 23, 2019
सहवास के अधिकार का कानून फिर सुनवाई के दायरे में
- अंजलि सिन्हा
सुप्रीम कोर्ट में सहवास के अधिकार / रेस्टीटयूशन आफ कान्जुगल राइटस/ के कानून को लेकर फिर से एक याचिका दायर की गयी है। सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका की सुनवाई के लिए सहमति दे दी है। अब सुप्रीम कोर्ट के तीन जज इसकी सुनवाई करेंगे। याचिकाकर्ता कानून के दो छात्रों ने - ओजस्व पाठक और मयंक गुप्ता - इस कानून के खिलाफ दायर अपनी याचिका में कहा है कि यह कानून व्यक्तिगत गरिमा तथा स्वायत्तता के खिलाफ है तथा समानता और स्वतंत्राता के मौलिक अधिकार का हनन करता है। इस कानून में प्रावधान है कि पति या पत्नी एक-दूसरे के खिलाफ दाम्पत्य सम्बन्ध स्थापित करने की डिग्री प्राप्त करने का अधिकार देता है। इस डिग्री का उल्लंघन करना दंडनीय है।
Tuesday, March 5, 2019
'All Is Fair in Love and War' : A Masculine Idea
- Dr Nidhi Mishra
Why are all wars essentially the culmination of toxic masculinity and how deep the misogyny is steeped within war lusty & blood lusty men is perfectly reflected in these "jokes" & "memes" ,of course shared ONLY by men (including the sharing of a tweet by a misogynist female by a male). In a group having both male and female members. This is how men dominate the public discourse. This is how men dominate public space,online or off line. This is how men set the agenda for any group or community. The women either squirmimg silently or joining the bro culture so as not to feel left out and/or be percieved as "unsporting".
Why are all wars essentially the culmination of toxic masculinity and how deep the misogyny is steeped within war lusty & blood lusty men is perfectly reflected in these "jokes" & "memes" ,of course shared ONLY by men (including the sharing of a tweet by a misogynist female by a male). In a group having both male and female members. This is how men dominate the public discourse. This is how men dominate public space,online or off line. This is how men set the agenda for any group or community. The women either squirmimg silently or joining the bro culture so as not to feel left out and/or be percieved as "unsporting".
Sunday, January 27, 2019
स्त्री मुक्ति संगठन की सालाना कार्यशाला
स्त्री मुक्ति संगठन सन 2000 से ही हर साल 3.4 दिन की रिहाइशी कार्यशाला का आयोजन करता आया है. कार्यशाला में संगठन के कार्यकर्ताओं और सदस्यों के अतिरिक्त अन्य महिला साथी भी जो महिला मुक्ति की राजनीति में विश्वास रखते हैं शिरकत करते रहे हैं. संगठन ने इस बार अपनी 19 वीं कार्यशाला का आयोजन 18 से 20 अक्टूबर 2018 को वृन्दावन में किया, इसमें दिल्ली, इलाहाबाद के अतिरिक्त पुणे से महिलाओं ने सक्रिय भागीदारी निभाई। इस कार्यशाला में मुख्य सत्र रहे.
ऽ आंतरिक /अंदरूनी पितृसत्ता और जेंडर
ऽ वृन्दावन विधवा और एकल महिला की पहचान का सवाल
Me Too केम्पेन
ऽ क्यों मैं एक नारीवादी नहीं हूँ - एक नारीवादी घोषणापत्र, पुस्तक पर चर्चा
ऽ यूनिवर्सल हेल्थ केयर
ऽ समकालीन भारतीय समाज में जाति और जेंडर का अंतर्सम्बध
ऽ समकालीन भारतीय राजनैतिक हालात
प्रत्येक सत्र में गंभीर चर्चा हुईं। सत्रों में उठे विचारों ने उभरते राजनीतिक और सैद्धांतिक मुद्दों पर हमारी समझ को बढ़ाने और विभिन्न समूहों के अनुभव साझा करने और उनसे सीखने का मौका दिया। शाम को होने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भी सभी साथियों ने बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया। समाज में महिलाओं के साथ होने वाली हिंसा के विभिन्न रूपों को उजागर करना और आज के भारतीय राजनीतक माहौल को भी सामने लाना, सांस्कृतिक कार्यक्रम का खास फोकस रहा.
Friday, January 18, 2019
पांड्या और राहुल: बेलगाम मर्दवाद की ये बीमारी बचपन में लग जाती है!
हार्दिक और राहुल के व्यवहार से ये जाहिर हो गया है कि भारतीय मर्दों की बचपन की ट्रेनिंग में भारी खोट है. परिवार, स्कूल और मोहल्ले लड़कों को एक अच्छा नागरिक बनना नहीं सिखा पा रहे हैं.
- गीता यादव
- क्या तुम जानते हो कि मैं कितनों के साथ सो चुका हूं.
- बताता हूं कि एक दिन में मैं कितनों के साथ सो चुका हूं.
- मैं उसे इतनी जल्दी कैसे बिस्तर पर लेकर गया
- तुम उसको जानते हो, वह तो एक दिन में पट गई.
- जानते हो कि जब मैं उसे बिस्तर पर लेकर गया, तो फिर क्या हुआ.
Saturday, January 5, 2019
Modi's Women's Empowerment Scheme is Putting Them In Debt Instead
Even the women described as "success stories" by the
government, say the Stree Swabhiman scheme has failed.
Women manufacturing sanitary
napkins under 'Stree Swabhiman' project in village Jamsher in Punjab.
JALANDHAR,
Punjab—The much-hyped “Stree Swabhiman” central government scheme,
meant to simultaneously boost women’s incomes and improve their menstrual
health by training them to set up small-scale sanitary napkin manufacturing
units, has failed on both fronts.
Rather,
the scheme resulted in the production of poor quality sanitary pads that no one
wants, and has plunged scores of rural women in debt, thereby furthering their
financial precarity, HuffPost India has found. The scheme
targeted over 35,000 women who work as village-level entrepreneurs (VLEs)
under the Common Service centre (CSC) e-governance project of Ministry of
Electronics and Information Technology (MeitY). According to the government,
the scheme has been implemented in over 178 districts in 23 states.
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