दुनिया भर की शोषित-पीड़ित महिलाओं की मुक्ति का उत्सव आठ
मार्च
‘अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस’
समूची दुनिया में धूमधाम से मनाया जाता है।
आज के दिन दुनिया के तमाम छोटे-बड़े शहरों,
नगरों, कस्बों में महिलाएं सड़कों
पर उतरती है, रैलियां करती हैं, सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन करती हैं
और स्त्री मुक्ति के अधूरे संघर्ष को पूरा करने का अपना
संकल्प दोहराती हैं। यह दिन दुनिया की महिलाओं के लिए अन्याय तथा शोषण के खिलाफ संघर्ष का
प्रतीक दिन है तथा साथ ही जीत के जश्न का भी है। 1857
में इसी दिन को पहली बार संगठित रूप में महिलाएं शिकागो की सड़कों पर उतरी थीं।
उन्होंने अपने फैक्टरी मालिकों से अपने काम घंटे 16 से घटा कर 10 घंटा करने की तथा अपने
नन्हें बच्चों के लिए पलनाघर आदि सुविधा की मांग की थी। बाद
में 1910
में डेनमार्क की राजधानी कोपेनहेगेन शहर में समाजवादियों के
सम्मेलन में जानीमानी नेता क्लारा जेटकिन के प्रस्ताव पर इस दिन को महिला दिवस के रूप
में मनाने का तय किया गया। फिर 1975
में संयुक्त राष्ट्रसंघ ने भी इस पर
अपनी मुहर लगायी। धीरे धीरे यह दिन दुनिया भर में प्रचलित
हो गया।
इसी कड़ी में ५ मार्च को स्त्री मुक्ति संगठन की ओर से
रोहिणी सेक्टर 15 में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस का समारोह आयोजित किया गया। कार्यक्रम में वक्ताओं ने अपनी बात रखी और कविता पाठ के साथ कई सांस्कृतिक
प्रस्तुतियाँ हुईं। स्त्री
मुक्ति संगठन की वरिष्ठ सदस्या सुश्री अंजलि सिन्हा ने अपनी बात रखते हुए इस दिन के ऐतिहासिक महत्त्व को रेखांकित करते
हुए कहा कि यह दिन महिलाओं
के संघर्षों और उनकी जीत का दिन है। महिलाओं ने लंबी लड़ाई लड़ी है जिसके कारण हम आज खुली हवा में सांस ले रहे है, बहुत कुछ हमने पाया है लेकिन अभी बहुत कुछ पाना बाकि है। उन्होंने यह भी कहा कि
महिलाओं का मुद्दा केवल महिलाओं
का मुद्दा नहीं है , समाज का
मुद्दा है। ठीक इसी तरह महिलाओं को भी समाज के मुद्दों से सरोकार रखना होगा।
आज जिस तरह का माहौल बनाने की कोशिश की जा रही है वह खतरनाक है। अभिव्यक्ति की
आज़ादी और हर तरह की आज़ादी पर
हमले किये जा रहे हैं, आज़ादी के हक़
में आवाज़ उठाने वालों की आवाज बंद
करने की कोशिश की जा रही है। इसी कोशिश में पानसरे,दाभोलकर और कलबुर्गी को हमेशा के लिए चुप करा दिया गया। जाति और धर्म
के नाम पर ज़हर घोलने का काम
प्रतिक्रियावादी ताकते कर रही हैं। इन सारे मुद्दों से महिलाओं का भी सरोकार होना चाहिए क्योकि वे भी इसी समाज का
हिस्सा हैं, इसी देश की नागरिक हैं।
स्त्री मुक्ति संगठन पिछले बीस सालो से इस इलाके में कार्यक्रम आयोजित करता रहा है। संगठन यहाँ पर बच्चों के
लिए एक पुस्तकालय भी चलाता है जिसके
तहत समय-समय पर कार्यक्रम किये जाते रहते हैं। इस कार्यक्रम
में "पिंजरा तोड़" के साथियों ने भी अपने गीत प्रस्तुत किये। संगठन की साथी नाजमा ने अपनी कविता प्रस्तुत
की। सांस्कृतिक टीम में ममता कालिया की कविता "खाँटी घरेलू
औरत" की कविता पाठ प्रस्तुति की
तथा समूह गीत गए गए। नारों की गूँज के साथ कार्यक्रम की समाप्ति हुई।
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