- अंजलि सिन्हा
पटना की गीता को जब दिल्ली के एक कालेज में प्रवेश के लिए आना पड़ा तो उसने अपनी यह यात्रा अकेले ही की, किसान परिवार से सम्बद्ध उसके माता पिता के लिए यह मुमकिन नहीं था कि वह उसका साथ देते। या हैद्राबाद की राधिका, जो वहां विश्वविद्यालय में रिसर्च स्कॉलर है, उसे जब फील्ड स्टडी के लिए उत्तर भारत के पहाड़ी इलाकों में जाना होता है, वह अकेले ही आती जाती है ; या वही स्थिति लखनउ की किसी संस्था में काम करनेवाली आयेशा का है, जिसे अकेले ही सफर करना पड़ता है।
गीता हो या राधिका हों या आयेशा हो, इन सभी युवतियों, महिलाओं को अपवाद नहीं कहा जा सकता। हाल में भारत सरकार के नेशनल सेम्पल सर्वे की एक सर्वेक्षण रिपोर्ट /हिन्दुस्तान 17 जुलाई 2016/ के जो अंश अख़बारों में प्रकाशित हुए है, वे यही बताते हैं कि देश भर में चालीस फीसदी महिलाएं अकेले घूमती हैं। वे तमाम आशंकाओ ंको पार पाकर घूमने को आगे आ रही हैं। यद्यपि कई राज्य अभी बहुत पीछे हैं, लेकिन कुछ जैसे पंजाब, तेलंगाना, केरल, आंध्रा, तमिलनाडु आदि आगे हैं। यह क्रमशः 66 फीसदी, 60 फीसदी, 58 फीसदी, 53 फीसदी तथा 55 फीसदी का है। इनमें पिछड़े राज्यों में जहां बिहार /13 फीसदी/, हरियाणा /13 फीसदी/ दिखते हैं, वहीं इस मामले में सबसे ख़राब स्थिति दिल्ली की है जहां यह प्रतिशत 10 फीसदी तक ही है। सर्वे के मुताबिक ग्रामीण महिलाओं का फीसद शहरी महिलाओ से आगे है / ग्रामीण 41 फीसदी और शहरी 37 फीसद/। शायद इस बदलाव का कारण होगा कि ग्रामीण इलाकों से पढ़ने या कैरियर बनाने के लिए शहर तक जाना ही होता है और लड़कियों में पढ़ाई के प्रति झुकाव बढ़ा है।