----रूपाली सिन्हा
(जॉन स्टुअर्ट मिल 19 वीं सदी के उन महान दार्शनिकों और विचारकों में से थे
जिन्होंने स्त्री मुक्ति का ज़ोरदार समर्थन किया। जीवन के अंतिम समय तक वे
स्त्रियों के अधिकारों के लिए होने वाले संघर्षों और आंदोलनों को समर्थन
देते रहे। )

जॉन स्टुअर्ट मिल एक प्रसिद्द
राजनीतिज्ञ, दार्शनिक तथा अर्थशास्त्री थे। उनका समय यूरोप में जनवादी
क्रांतियों के दौर का समय था, जिन्होंने उनकी विचारधारा को गहराई तक
प्रभावित किया। मिल का मानना था कि पूँजीवाद की "कमियों" को दूर कर उसे जान
कल्याणकारी बनाया जा सकता है। उनकी विचारधारा मानवतावाद,उदारवाद और
आदर्शवाद का मिश्रण थी। अपने गहरे मानवीय सरोकारों के चलते उन्होंने अपने
देश में चल रहे दासता विरोधी संघर्ष का ज़बरदस्त समर्थन किया। मिल लम्बे
समय तक ईस्ट इंडिया कंपनी में कार्यरत रहे। 1865-68 तक वे हाउस ऑफ़ कॉमन्स
के सदस्य रहे। वे एक लोकप्रिय जन नेता थे। अन्य नागरिक अधिकारों के साथ-साथ
मिल स्त्रियों के अधिकारों के प्रति आरम्भ से ही जागरूक थे तथा उनके
आंदोलनों को समर्थन देते थे। अपनी संसद सदस्यता के दौरान ही सन 1867में
उन्होंने स्त्रियों के मताधिकार का प्रस्ताव रखा था जो पारित नहीं हुआ।
उन्होंने 'दी सब्जेक्शन ऑफ़ वीमेन' 1861 में लिखी जो 1869 में जाकर
प्रकाशित हो पाई। इस पुस्तक ने पूरे यूरोप में स्त्री आंदोलन को नई ऊर्जा
और गति दी। पुस्तक में मिल ने पुरुषप्रधान समाज तथा स्त्रियों के प्रति
स्थापित मान्यताओं, रूढ़ियों तथा विधि-निषेधों की तर्कपूर्ण कड़ी आलोचना की।