पिछले 14 वर्षों से स्त्री मुक्ति संगठन 25 दिसंबर को स्त्री सम्मान दिवस के रूप मनाता आ रहा है। सन 1927 में इसी दिन डॉ अम्बेडकर के नेतृत्व में प्रतिगामी पुस्तक ‘मनुस्मृति’ को जलाया गया था जो जाति और लिंग आधारित गैर बराबरी का आधार रही है। बेशक ‘मनुस्मृति’ को आधिकारिक तौर पर सालों पहले खत्म कर दिया गया हो लेकिन परंपरा और संस्कृति के नाम पर आज भी हमारे समाज में तरह-तरह की गैर बराबरी मौजूद है। हिंसा के नए-नए रूप रोज ही देखने को मिलते ही रहते हैं। परंपरा और संस्कृति का पितृसत्तात्मक चेहरा नित नए रूपों में आकर औरत के जीवन पर अपना शिकंजा कसने की कोशिश करता ही रहता है।
Thursday, December 24, 2015
स्त्री सम्मान दिवस (Day for Women's Dignity), Pamphlet
पिछले 14 वर्षों से स्त्री मुक्ति संगठन 25 दिसंबर को स्त्री सम्मान दिवस के रूप मनाता आ रहा है। सन 1927 में इसी दिन डॉ अम्बेडकर के नेतृत्व में प्रतिगामी पुस्तक ‘मनुस्मृति’ को जलाया गया था जो जाति और लिंग आधारित गैर बराबरी का आधार रही है। बेशक ‘मनुस्मृति’ को आधिकारिक तौर पर सालों पहले खत्म कर दिया गया हो लेकिन परंपरा और संस्कृति के नाम पर आज भी हमारे समाज में तरह-तरह की गैर बराबरी मौजूद है। हिंसा के नए-नए रूप रोज ही देखने को मिलते ही रहते हैं। परंपरा और संस्कृति का पितृसत्तात्मक चेहरा नित नए रूपों में आकर औरत के जीवन पर अपना शिकंजा कसने की कोशिश करता ही रहता है।
स्त्राी सम्मान दिवस
इस वर्ष स्त्राी सम्मान दिवस का पहला कार्यक्रम रोहिणी के सेक्टर 17 में 11 दिसम्बर को आयोजित हुआ। इस कार्यक्रम में इलाके की महिलाएं एकत्रा हुईं तथा दिवस की ऐतिहासिक प्रष्ठभूमि पर भाषणों तथा चर्चा के बाद आज के वर्तमान समय में स्त्राी सम्मान का क्या मतलब है तथा वह कब कब कहां कैसे टूटता है इस पर चर्चा हुई। आने वाले समय में हमारी गतिविधियां क्या होनी चाहिए और हमारी भूमिकायें कैसे सुनिश्चित हो सकें इस पर बात तथा गाने के बाद कार्यक्रम समाप्त हुआ।
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Report- स्त्राी सम्मान दिवस
Wednesday, December 23, 2015
राजनीति में स्त्री: मिथक और यथार्थ, एक जमीनी पड़ताल
-स्वदेश कुमार सिन्हा
’’आज का संकट ठीक इस बात में निहित है कि जो पुराना है वह मर रहा है और नया पैदा नही हो सकता है , इस अन्तराल मेें रूग्ण लक्षणो का जबरदस्त वैविध्य प्रकट होता है।’’
(अन्तोनियोें ग्राम्शी)
प्रिजन नोट बुक्स
राज्य विधान सभाओ तथा लोकसभा मेें स्त्रियों को 33 प्रतिशत आरक्षण का बिल लम्बे समय से विचाराधीन है, इस पर विभिन्न राजनीतिक दलो के दृष्टिकोणो की ढेरो व्याख्या की जा चुकी है और की जाती रहेंगी , परन्तु इस सम्बन्ध मेें भारतीय समाज मेें स्त्रियों के प्रति पितृ सत्तात्मक वर्चस्व और सामंती अवधारणाओ की जमीनी हकीकत क्या है ? इसकी पड़ताल की आवश्यकता है, क्योकि संस्कारो में चाहे वामपंथी हो या दक्षिण पंथी ज्यादातर पुरूषो की स्त्रियों के प्रति सोच एक जैसी है मात्रा कम या ज्यादा हो सकती है। लम्ब्ेा समय से वामंपंथी आन्दोलन से जुड़े रहने के दौरान इस बात का लगातार एहसास होता रहा कि ज्यादातर ’’पार्टी कामरेड’’ अपनी पत्नियोें, बेटियों तथा बहनो को राजनीति से दूर रखना चाहते थे। उन्हे लगातार यह भय सताता रहता था कि वे स्त्रियॉ उनसे ज्यादा ’’बौद्धिक न हो जाये’’ अथवा बहन, बेटियॉ अर्न्तजातीय अथवा अर्न्त धार्मिक विवाह न कर लेे। पार्टी फोरमो तथा जनसभाओ में पत्रिकाओ के लेखो मेें स्त्री की आजादी और नारी विमर्श की लम्बी -लम्बी बाते करने वाले पाटी्र कामरेडो की असलियत लम्बे समय तक साथ रहने पर ही ज्ञात होती है।
’’आज का संकट ठीक इस बात में निहित है कि जो पुराना है वह मर रहा है और नया पैदा नही हो सकता है , इस अन्तराल मेें रूग्ण लक्षणो का जबरदस्त वैविध्य प्रकट होता है।’’
(अन्तोनियोें ग्राम्शी)
प्रिजन नोट बुक्स
राज्य विधान सभाओ तथा लोकसभा मेें स्त्रियों को 33 प्रतिशत आरक्षण का बिल लम्बे समय से विचाराधीन है, इस पर विभिन्न राजनीतिक दलो के दृष्टिकोणो की ढेरो व्याख्या की जा चुकी है और की जाती रहेंगी , परन्तु इस सम्बन्ध मेें भारतीय समाज मेें स्त्रियों के प्रति पितृ सत्तात्मक वर्चस्व और सामंती अवधारणाओ की जमीनी हकीकत क्या है ? इसकी पड़ताल की आवश्यकता है, क्योकि संस्कारो में चाहे वामपंथी हो या दक्षिण पंथी ज्यादातर पुरूषो की स्त्रियों के प्रति सोच एक जैसी है मात्रा कम या ज्यादा हो सकती है। लम्ब्ेा समय से वामंपंथी आन्दोलन से जुड़े रहने के दौरान इस बात का लगातार एहसास होता रहा कि ज्यादातर ’’पार्टी कामरेड’’ अपनी पत्नियोें, बेटियों तथा बहनो को राजनीति से दूर रखना चाहते थे। उन्हे लगातार यह भय सताता रहता था कि वे स्त्रियॉ उनसे ज्यादा ’’बौद्धिक न हो जाये’’ अथवा बहन, बेटियॉ अर्न्तजातीय अथवा अर्न्त धार्मिक विवाह न कर लेे। पार्टी फोरमो तथा जनसभाओ में पत्रिकाओ के लेखो मेें स्त्री की आजादी और नारी विमर्श की लम्बी -लम्बी बाते करने वाले पाटी्र कामरेडो की असलियत लम्बे समय तक साथ रहने पर ही ज्ञात होती है।
Monday, December 21, 2015
Stree Samaan Divas (Day for Women’s Dignity)
Stree Mukti Sangathan had organised its 14th Stree
Samman Divas (Day for Women’s Dignity) on 20th December in Central
Park, Connaught Place, Delhi. We commemorate this day of burning the
“Manusmriti” by Dr. Babasaheb Ambedkar. You might be aware that it was on 25
December 1927 that thousands of people came together under the leadership of Dr
Ambedkar to consign to flames Manusmriti, the 'sacred' book which epitomised
and legitimised the subhuman existence of the socially and culturally
downtrodden in the Indian society, especially the dalits and the women. To
underline the fact of the societal violence which continues unabated till date,
we have been celebrating this day as 'Stree Samman Divas' for the last 14
years.
Monday, December 7, 2015
किशोरों में बढ़ती आत्महत्याओं पर नज़र
- अंजलि सिन्हा
उत्तर भारत में कोचिंग हब बने
राजस्थान का कोटा शहर पिछले दिनों कुछ अलग कारणों से सूर्खियों में रहा। अक्तूबर
माह में वहां अंजलि आनंद/निवासी मुरादाबाद/, हर्षदीप कौर/निवासी कोटा/, ताराचंद /निवासी पाली/सिद्धार्थ
चौधरी /निवासी बिहार/, विकास
मीणा/निवासी राजस्थान/ और अमितेश साहू /निवासी छत्तीसगढ/ की अस्वाभाविक मौत हुई।
अगर रहस्यमयी परिस्थितियों में हुई अमितेश की मौत को अलग भी कर लें तो भी यह देख
सकते हैं कि चाहे मेडिकल या इंजिनीयरिंग की परीक्षा के लिए कोचिंग हासिल कर रहेे
पांच बच्चों ने अत्यधिक दबाव एवं तनाव के कारण आत्महत्या कर ली।
Friday, November 27, 2015
सुरक्षा का मजबूत जोड़
- रूपाली सिन्हा
शादियों का मौसम एक
बार फिर से शबाब पर है। एक ज़माना था जब प्रेमविवाह "घटना" होती थी। इसके घटने
पर बड़े-बड़े नाटक-तमाशे होते थे। प्रेम-विवाह बदनामी का अच्छा-खासा सबब हुआ करता था। ऐसा करने वाले युवाओं को या तो घर-परिवार से बहिष्कृत होना पड़ता था या
बड़ी लानत-मलामत, मान-मनुहार के
बाद उनकी "घर-वापसी" हो जाती थी। कभी-कभी तो
माँ-बाप अपनी नाक बचाने के लिए यह कहकर पर्दा डालते थे कि "अरे यह लव मैरेज
थोड़ी है, वो तो हमने शादी पक्की कर दी थी,उसके बाद से दोनों मिलने-जुलने लगे थे।" धीरे-धीरे इस नाटक-तमाशे का
पटाक्षेप हो जाता था। समय के साथ इस स्थिति में परिवर्तन आया। ऐसे बागी
युवाओं की संख्या बढ़ने लगी और प्रेम-विवाह को सामाजिक स्वीकृति मिल गयी। ऐसे
बागियों ने समाज में मनचाहा जीवन साथी चुनने के लिए अपना स्पेस बनाया। लेकिन ऐसा
लगता है कि नई सदी में समय का चक्र पीछे घूम गया है। आज की युवा पीढ़ी जीवन साथी चुनने के मामले में उसी सामंती परंपरा को ढोती नज़र आ रही है जहाँ बच्चों की शादी माँ-बाप की
ज़िम्मेदारी होती थी। हालाँकि यह भी सच है कि समाज
के एक हिस्से में आज भी प्रेमीयुगल स्वेच्छा से किये गए
इस चुनाव के लिए फांसी पर भी लटका दिए जाते हैं ,कबीलाई समाज
के अवशेष यहाँ अपने बर्बर रूप में दिखाई देते हैं। लेकिन मैं जिस वर्ग की बात कर
रही हूँ वे मध्य/उच्च मध्य वर्ग के वे युवा हैं जिनके ऊपर समाज,परिवार या समुदाय का कोई बंधन नहीं है। तो आखिर इस नयी परिघटना की
क्या वजह हो सकती है? क्या आज के युवा अधिक आज्ञाकारी हो गए
है? या उनमे जीवन साथी चुनने का विवेक नहीं रहा? यहाँ भी उत्तर आधुनिक बयार बहने लगी है या कोई अन्य कारण हैं?
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Articles-सुरक्षा का मजबूत जोड़
Tuesday, November 24, 2015
Davids Versus Goliath! How Yogi Adityanath had to 'Go Back ' to .....(err not Pakistan but) Gorakhpur
- Subash Gatade
The Pandal was ready.
The Sainiks with their saffron bandanas - who were scattered here and there - were
eagerly waiting to listen to another fiery call from their Senapati.
Time was already running out but the 'Star Speaker'
was nowhere to be seen.
Little did they knew that their Senapati had
already made an about turn and was headed back home as the district
administration had 'advised' him against entering the district and was told
that he would face 'legal action if he dares to do so.'
For Yogi Adityanath, the firebrand MP of BJP, who is
widely known for his controversial statements as well as acts and who every other day asks dissenters
to 'go to Pakistan' , it was his comeuppance moment when he was rather forced
to 'go back' to Gorakhpur. And all his plans to be the star speaker at the
inaugural function of Students Union of Allahabad University - once called
'Oxford of the East' - lay shattered.
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Articles- How Yogi Was Sent Back
Sunday, November 8, 2015
मारिसा मायेर का मातृत्व अवकाश
-अंजलि सिन्हा
अमेरिकी मूल की बहुदेशीय कम्पनी याहू की सीईओ मारिसा मायेर इन दिनों
गर्भवती है तथा दिसम्बर में वह अपनी जुडवा बेटियों को जन्म देनेवाली है।
अभी वह अपनी कम्पनी के काम में जितनी व्यस्त हैं उसकी खूब प्रशंसा उन्हें
प्राप्त हो रही हे। उन्होंने इसके पहले की खबरों में यह भी बताया था कि
जिस समय उन्होने याहू की नौकरी जॉइन की थी तब भी वह गर्भवती थी और नौकरी के
दौरान ही उन्होंने अपले पहले बेटे का जन्म दिया था। अपने इण्टरव्यू में
उन्होंने यह बात साफ तौर पर पहले ही बता दी थी, लेकिन अच्छी बात यह रही कि
इससे उनकी नियुक्ति पर कोई फरक नहीं पडा और अपने पद पर करते हूए वह याहू
को सबसे अधिक मुनाफे कमाने वाले दौर में ले गयी।
Tuesday, April 7, 2015
Liberating Hindu Women
-- Flavia Agnes
The
recent revival of the discussion on enacting a Uniform Civil Code,
which its proponents believe will give all women equal rights, overlooks
the reality of the discrimination that Hindu women continue to face
despite amendments in Hindu personal laws, including on issues of
maintenance and inheritance. Rather than uniformity in law, women need
an accessible and affordable justice system.
Flavia Agnes (flaviaagnes@gmail.com) is a women’s rights lawyer and director of Majlis, which runs a rape victim support programme in Mumbai.
An
influential, senior criminal lawyer of the Bombay High Court, a member
of the Bharatiya Janata Party (BJP) and, on his own admission, a close
associate of the Prime Minister, spelt out the agenda of his party to
enact the Uniform Civil Code at a recent lecture. He made it sound so
simple: just abolish polygamy and triple talaq, and he added as an
afterthought that Christians should be granted the right to divorce by
mutual consent (they had already secured this right in 2001 by amending
their own personal law). A moment later he added that Parsi matrimonial
courts should be abolished. And then, he said, India would be able to
enter the comity of nations that follow a uniform secular and civil law,
a symbol of modernity, progress and development and finally shed the
colonial baggage of dividing people along religious identities. He
claimed that this would promote communal harmony and bring about
national integration. The task of the judiciary would become simple: one
law for all. Then he looked at me, his co-panellist, and commented, “Ms
Agnes, you should welcome this move, after all you stand for gender
justice.”
He
went on to say that “we” had abolished sati, female infanticide,
polygamy, child marriage, and dowry and liberated “our” women. Now we
need to do the same for other women, liberate them from their oppressive
laws. If only it was that simple — to liberate women, irrespective of
whether they are Hindus, Muslims or others! Perhaps the lawyer needs to
be excused for his ignorance about the complex mosaic of personal laws
in our country. After all, this was not his area of legal expertise. He
was only articulating his party’s position.
As
I heard him, my concern was less for minority women, and more for
Hindus, who are under the erroneous belief that they are governed by a
“modern, uniform, secular and gender just law.” Since this popular
fiction gets constantly projected in the media in defence of enacting a
Uniform Civil Code, it needs to be examined against ground realities.
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Liberating Hindu Women
Tuesday, March 10, 2015
पत्नी और मां का त्याग तथा 8 मार्च का सन्देश
-अंजलि सिन्हा
अन्तराष्ट्रीय महिला दिवस का उत्सव बीता। वह किसी के लिए उत्सव था, किसी के लिए पी आर (पब्लिक रिलेशन) करने का मौका था, किसी के लिए घर में यह कहने का मौेेका था कि कम से कम आज बख्श दो आज महिला दिवस है, तो कार्पोरेट सेक्टर के लिए भी अपने अपने प्रॉड्क्टस के प्रचार में स्त्राी मुक्ति का तड़का लगाने का और महिलाओं को आकर्षित करने के लिए छूट देने का ऐलान करने का मौका था।
मगर इतनाही नहीं था। काफी बडी संख्या मं महिलाओं तथा कई संगठनों ने इस दिन को संघर्ष और संकल्प दिवस के रूप में भी मनाया, आने वाले समय के महिला मुद्दों पर अपनी प्रतिबद्धता दुहराई और अतीत केेेे गौरवशाली इतिहास को याद किया।
Tuesday, March 3, 2015
स्त्रियों की आज़ादी के प्रबल पक्षधर -जॉन स्टुअर्ट मिल
----रूपाली सिन्हा
(जॉन स्टुअर्ट मिल 19 वीं सदी के उन महान दार्शनिकों और विचारकों में से थे जिन्होंने स्त्री मुक्ति का ज़ोरदार समर्थन किया। जीवन के अंतिम समय तक वे स्त्रियों के अधिकारों के लिए होने वाले संघर्षों और आंदोलनों को समर्थन देते रहे। )
(जॉन स्टुअर्ट मिल 19 वीं सदी के उन महान दार्शनिकों और विचारकों में से थे जिन्होंने स्त्री मुक्ति का ज़ोरदार समर्थन किया। जीवन के अंतिम समय तक वे स्त्रियों के अधिकारों के लिए होने वाले संघर्षों और आंदोलनों को समर्थन देते रहे। )
जॉन स्टुअर्ट मिल एक प्रसिद्द
राजनीतिज्ञ, दार्शनिक तथा अर्थशास्त्री थे। उनका समय यूरोप में जनवादी
क्रांतियों के दौर का समय था, जिन्होंने उनकी विचारधारा को गहराई तक
प्रभावित किया। मिल का मानना था कि पूँजीवाद की "कमियों" को दूर कर उसे जान
कल्याणकारी बनाया जा सकता है। उनकी विचारधारा मानवतावाद,उदारवाद और
आदर्शवाद का मिश्रण थी। अपने गहरे मानवीय सरोकारों के चलते उन्होंने अपने
देश में चल रहे दासता विरोधी संघर्ष का ज़बरदस्त समर्थन किया। मिल लम्बे
समय तक ईस्ट इंडिया कंपनी में कार्यरत रहे। 1865-68 तक वे हाउस ऑफ़ कॉमन्स
के सदस्य रहे। वे एक लोकप्रिय जन नेता थे। अन्य नागरिक अधिकारों के साथ-साथ
मिल स्त्रियों के अधिकारों के प्रति आरम्भ से ही जागरूक थे तथा उनके
आंदोलनों को समर्थन देते थे। अपनी संसद सदस्यता के दौरान ही सन 1867में
उन्होंने स्त्रियों के मताधिकार का प्रस्ताव रखा था जो पारित नहीं हुआ।
उन्होंने 'दी सब्जेक्शन ऑफ़ वीमेन' 1861 में लिखी जो 1869 में जाकर
प्रकाशित हो पाई। इस पुस्तक ने पूरे यूरोप में स्त्री आंदोलन को नई ऊर्जा
और गति दी। पुस्तक में मिल ने पुरुषप्रधान समाज तथा स्त्रियों के प्रति
स्थापित मान्यताओं, रूढ़ियों तथा विधि-निषेधों की तर्कपूर्ण कड़ी आलोचना की।
Monday, February 2, 2015
सेना में महिलाओं को स्थायी कमीशन: क्या अब भेदभावपूर्ण रवैये का अन्त होगा ?
- अंजलि सिन्हा
इस बार गणतंत्रा दिवस परेड में तीनों सेवाओं - थलसेना, वायुसेना और नौसेना के - महिला बटालियन की हिस्सेदारी को ऐतिहासिक बताया गया। इसके महज एक दिन पहले राष्ट्रपति ओबामा द्वारा सलामी गारद के निरीक्षण के दौरान विंग कमांडर पूजा ठाकुर ने गार्ड आफ ऑनर प्रदान किया। अख़बारों में तथा विश्लेषकों ने ‘महिला शक्ति’ की इस दस्तक पर सन्तोष जाहिर किया। अमेरिकी राष्ट्रपति ने भी इस पर प्रसन्नता जाहिर की तथा इसे महिला सशक्तिकरण के लिए अहम बताया। यह मालूम नहीं कि राष्ट्रपति ओबामा को यह पता था या नहीं कि सेना में वहां तक भी जगह पाने के लिए महिलाओं ने संघर्ष किया है तथा वह अभी भी स्थायी कमीशन के लिए कानूनी जंग लड़ रही हैं।
गणतंत्रा दिवस परेड के बाद सेनाप्रमुख जनरल सिंह ने परेड में हिस्सा लेनेवाली सेना के पूरे महिला दस्ते के महिला अधिकारियों के लिए चाय पार्टी रखी थी। उपरोक्त पार्टी में सेनाप्रमुख ने जानकारी दी कि सेना की तरफ से रक्षा मंत्रालय को एक प्रस्ताव भेजा गया है कि सेना में महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन देने के लिए उनकी सेवा शर्तों में बदलाव किया जाए। अगर रक्षा मंत्रालय सहमति देता है तो स्थायी कमीशन मिलने के बाद महिला अधिकारी सेना की सभी शाखाओं में पूर्णकालिक सेवाएं दे पाएंगी। फिलहाल सेना में महिला अधिकारियों की नियुक्ति शार्ट सर्विस कमीशन के तहत होती है जिसकी अधिकतम अवधि 14 साल होती है, जबकि पुरूष अधिकारी 5 साल की सेवा के बाद स्थायी कमीशन के पात्रा हो जाते हैं।
Wednesday, January 21, 2015
सुन्दरता का मिथक
-अंजलि सिन्हा
गुजरात के वारछा स्थित गंगबा विद्यालय की 5 वीं कक्षा की छात्रा 12 वर्षीय प्रेक्षा कापड़ा ने कीटनाशक पीकर आत्महत्या कर ली। उसे उसके सहपाठी मोटी कह कर चिढ़ाते थे जिसके बारे में उसने अपने माता पिता को बताया था। ऐसी ही ख़बर कुछ समय पहले गाजियाबाद से आयी थी कि छठवीं एक छात्रा ने आग लगा कर इसलिए आत्महत्या कर ली क्योंकि उसे लगता था कि वह काली है।
आखिर इन छोटे बच्चों के मन में यह पैमाना कैसे बन गया कि मोटे होना चिढ़ाने की बात हो सकती है या काली होने से किसी के व्यक्तित्व में कमी होती है। ध्यान देने लायक बात है कि यह सिलसिला महज भारत तक सीमित नहीं है, जैसे लन्दन से प्रसारित इस ख़बर ने उजागर किया था जहां 13 साल की एक स्कूली छात्रा ने अपने सहपाठियों द्वारा बदसूरत कहे जाने पर आत्महत्या कर ली थी। वहां पर भी किए गए अध्ययन में देखा गया कि सुन्दरता की ग्रंथि से दुखी होकर आत्महत्या की राह चुननेवाली या अपने आप को नुकसान पहुचानेवाली लड़कियों की संख्या में इधर बीच तेजी से इजाफा हो रहा है।
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Articles- सुन्दरता का मिथक
Sunday, January 11, 2015
दुख निवारक हमारे वक्त़ में
-संजीवकुमार
बचपन से हम पढ़ते आये हैं कि मनुश्य एक सामाजिक प्राणी हैलेकिन क्याआज यकीन के साथ हम कह सकते हैं कि मनुश्य कि सामाजिकताआज बरकरार हैं।अभीकुछ दिन पहले की बात है, हमारे पड़ोस में एक किषोरी रहती है वो मेरी पत्नीसे कह रही थी कि आन्टी क्या हम लोग बड़ी पार्टी न्यू इयर इव परओर्गनाईज नहीं करसकते जिसमें पूरे एल.आइ.जी. के लोग भागीदारी करें इस पर मैं सोचने लगा एल.आइ.जी. में पूरे 576 फैल्टस हैं उसमें आधा भी खाली माने तो 288 फैल्टस। एक फैल्ट में चार लोग रहतें हेें तो कुल मिलाकर तकरीबन 1000 लोग होगें इनके लिए पार्टी ओर्गनाईज करने का किसकेपास कितना समय है और कौन सी जगह पर यह पार्टी ओर्गनाईज होसकती है इसलिए मैं सोचने पर मजबुर हो गया कि आज शहरों में संस्थाएॅ तो बहुत सारी बनी हुई है जैसे रेजिडेन्ट वेलफेयर एसोसिएशन वगैरह लेकिन क्या वे संस्थाएॅ आज मनुश्य के जीवन में जो एकाकीपन है उसको दूर कर पाती हैं।
Saturday, January 3, 2015
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